खोड़िया लोकनृत्य ने बांधा समा, दर्शकों को गुदगुदाया
रोहतक। रै गोरी फागण आया रंग भरा..., जैसे फाग और खोड़िया के गीतों पर डांस करते हुए छात्राओं ने हरियाणवी संस्कृति के अभिन्न अंग खोड़िया विद्या से दर्शकों को रूबरू कराया। संगीत नाटक अकादमी के सहयोग एवं हरियाणा लोक कला संस्थान के तत्वावधान में महारानी किशोरी जाट कन्या महाविद्यालय में चल रही 15 दिवसीय हरियाणवी लोकनृत्य खोडिया एवं लोकनृत्यों की कार्यशाला का बुधवार को समापन हुआ। मुख्य अतिथि हरियाणा कला परिषद के उपाध्यक्ष संजय भसीन, आकाशवाणी के वरिष्ठ उद्घोषक संपूर्ण बागड़ी, कलाकार रघुविंद्र मलिक रहे। अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्या रश्मी लोहचब ने की।
समारोह में तनिष्का, भव्यता, ऋचा, शालू किराड़, मुस्कान ने हरियाणवी लोकनृत्य की प्रस्तुति दी। योगेश वत्स ने भी ...लाख टके का बीजणा लोकगीत की सुंदर प्रस्तुति दी। महाविद्यालय की छात्राओं ने फाग लोकनृत्य प्रस्तुत कर दर्शकों को झूमने पर मजबूर कर दिया। कार्यशाला के निदेशक शीशपाल चौहान व सह निर्देशक की जिम्मेदारी संदीप यादव ने निभाई। कार्यशाला में 60 युवतियों ने अपनी प्रतिभा दिखाई एवं प्रशिक्षण प्राप्त किया।
यह है खोड़िया रिवाज
निर्देशक शीशपाल चौहान ने बताया कि खोड़िया हरियाणावी संस्कृति की खुशबू समेटने वाली ऐसी विद्या, जो यहां के कण-कण में रची-बसी हुई है। इसमें हंसी है, मखौल है, चुलबुलाहट है और थोड़ी चुहलबाजी भी। खोड़िया ऐसी रस्म-रिवाज है, जिसे शादी के घर में बरात निकलने के बाद औरतें निभाती हैं। खोड़िया नृत्य में सभी महिलाएं ग्रुप में इकट्ठा होकर पति-पत्नी और जीजा-साली के हंसी-मजाक वाले गीत गाती हैं। इसमें एक महिला जहां अपने भाई के कपड़े पहनकर लड़के (जीजा-भाई) का किरदार अदा करती है और भाभी-बहन के साथ वह छेड़छाड़ और मजाक करती है। शादी वाले घर में एक तरफ जहां बरात दुल्हन को लाने जाती है दूसरी तरफ घर की औरतें अपने मनोरंजन के लिए खोड़िया करती हैं और दुल्हन के स्वागत की तैयारियां करती हैं।
खोड़िया डांस के लोकगीत
छोटी सी बंदड़ी फैरां पै झगड़ी, रै तू लाया क्यूं ना रै सोने की तगड़ी...., हे मैं तो छेल छबीली नार, नारंगी सेहरे आला..., ठुंगे ऊपर तड़ी तागड़ी, हे रै रै कित गुच्छा कित चाबी..., मैं तो चंदा जैसी नार, राजा क्यूं लाए सोतनियां..., मेरी गाड़ी तै उतरा नवाब, बदला कर लेती..., आज डटाऊंगी रात तनै, ओ छोरे कॉलेज कै...,नींबू तोड़ण गई थी बाग मैं..., सास मेरी मटकणी नै चुंदड़ लिया ओढ़..., हाए चूड़ी ल्या दै नै-हाए कंगना ल्या दै नै..., अपणै ससुरै के आगे बहुड़ कैसे चालैगी..., जलता-बलता खैता मैं तै आया..., छोटी सी बनड़ी फैरा पै झगड़ी रै तू लाया क्यूं ना रै सोने की तगड़ी..., बोल्या पपिहा डलती रात नै... जैसे गीत शामिल हैं।